1
ChandraSingh`s Uploads
Shri Krishna Pragtya Katha from SriMadBhagwat Swami Akhandananda Sarswati Ji, an exponent of Bhagavata Purana and a scholar of diverse spiritual traditions including Vedanta, Bhakti, and associated Shastras (scriptures), narrates the Shri Krishna Janma Katha from Bhagvatam.
ChandraSingh
01:17:54
407
1 Downloads
0 Comments
ChandraSingh
00:10:52
583
0 Downloads
0 Comments
ऐसो को उदार जग माहीं ऐसो को उदार जग माहीं ।
बिनु सेवा जो द्रवै दीनपर राम सरिस कोउ नाहीं ॥ १ ॥
जो गति जोग बिराग जतन करि नहिं पावत मुनि ग्यानी ।
सो गति देत गीध सबरी कहँ प्रभु न बहुत जिय जानी ॥ २ ॥
जो संपति दस सीस अरप करि रावन सिव पहँ लीन्हीं ।
सो संपदा बिभीषन कहँ अति सकुच\-सहित हरि दीन्ही ॥ ३ ॥
तुलसिदास सब भाँति सकल सुख जो चाहसि मन मेरो ।
तौ भजु राम, काम सब पूरन करै कृपानिधि तेरो ॥ ४ ॥
तुलसीदास विरचित विनयपत्रिका
ChandraSingh
00:06:18
634
0 Downloads
0 Comments
Naam Vandana Naam Vandana from RamcharitManas sung by Pandit Chhannu Lal Mishra
ChandraSingh
00:29:36
584
0 Downloads
0 Comments
ChandraSingh
00:04:53
616
0 Downloads
0 Comments
ChandraSingh
00:06:05
638
0 Downloads
0 Comments
ChandraSingh
00:27:38
284
0 Downloads
0 Comments
Varsha-Sharad-Ritu-Varnan घन घमंड नभ गरजत घोरा। प्रिया हीन डरपत मन मोरा॥
दामिनि दमक रह न घन माहीं। खल कै प्रीति जथा थिर नाहीं॥
बरषहिं जलद भूमि निअराएँ। जथा नवहिं बुध बिद्या पाएँ॥
बूँद अघात सहहिं गिरि कैंसें । खल के बचन संत सह जैसें॥
छुद्र नदीं भरि चलीं तोराई। जस थोरेहुँ धन खल इतराई॥
भूमि परत भा ढाबर पानी। जनु जीवहि माया लपटानी॥
समिटि समिटि जल भरहिं तलावा। जिमि सदगुन सज्जन पहिं आवा॥
सरिता जल जलनिधि महुँ जाई। होई अचल जिमि जिव हरि पाई॥
दोहा- हरित भूमि तृन संकुल समुझि परहिं नहिं पंथ।
जिमि पाखंड बाद तें गुप्त होहिं सदग्रंथ॥१४॥
दादुर धुनि चहु दिसा सुहाई। बेद पढ़हिं जनु बटु समुदाई॥
नव पल्लव भए बिटप अनेका। साधक मन जस मिलें बिबेका॥
अर्क जबास पात बिनु भयऊ। जस सुराज खल उद्यम गयऊ॥
खोजत कतहुँ मिलइ नहिं धूरी। करइ क्रोध जिमि धरमहि दूरी॥
ससि संपन्न सोह महि कैसी। उपकारी कै संपति जैसी॥
निसि तम घन खद्योत बिराजा। जनु दंभिन्ह कर मिला समाजा॥
महाबृष्टि चलि फूटि किआरीं । जिमि सुतंत्र भएँ बिगरहिं नारीं॥
कृषी निरावहिं चतुर किसाना। जिमि बुध तजहिं मोह मद माना॥
देखिअत चक्रबाक खग नाहीं। कलिहि पाइ जिमि धर्म पराहीं॥
ऊषर बरषइ तृन नहिं जामा। जिमि हरिजन हियँ उपज न कामा॥
बिबिध जंतु संकुल महि भ्राजा। प्रजा बाढ़ जिमि पाइ सुराजा॥
जहँ तहँ रहे पथिक थकि नाना। जिमि इंद्रिय गन उपजें ग्याना॥
दोहा- कबहुँ प्रबल बह मारुत जहँ तहँ मेघ बिलाहिं।
जिमि कपूत के उपजें कुल सद्धर्म नसाहिं॥१५(क)॥
कबहुँ दिवस महँ निबिड़ तम कबहुँक प्रगट पतंग।
बिनसइ उपजइ ग्यान जिमि पाइ कुसंग सुसंग॥१५(ख)॥
बरषा बिगत सरद रितु आई। लछिमन देखहु परम सुहाई॥
फूलें कास सकल महि छाई। जनु बरषाँ कृत प्रगट बुढ़ाई॥
उदित अगस्ति पंथ जल सोषा। जिमि लोभहि सोषइ संतोषा॥
सरिता सर निर्मल जल सोहा। संत हृदय जस गत मद मोहा॥
रस रस सूख सरित सर पानी। ममता त्याग करहिं जिमि ग्यानी॥
जानि सरद रितु खंजन आए। पाइ समय जिमि सुकृत सुहाए॥
पंक न रेनु सोह असि धरनी। नीति निपुन नृप कै जसि करनी॥
जल संकोच बिकल भइँ मीना। अबुध कुटुंबी जिमि धनहीना॥
बिनु धन निर्मल सोह अकासा। हरिजन इव परिहरि सब आसा॥
कहुँ कहुँ बृष्टि सारदी थोरी। कोउ एक पाव भगति जिमि मोरी॥
दोहा- चले हरषि तजि नगर नृप तापस बनिक भिखारि।
जिमि हरिभगत पाइ श्रम तजहि आश्रमी चारि॥१६॥
सुखी मीन जे नीर अगाधा। जिमि हरि सरन न एकउ बाधा॥
फूलें कमल सोह सर कैसा। निर्गुन ब्रम्ह सगुन भएँ जैसा॥
गुंजत मधुकर मुखर अनूपा। सुंदर खग रव नाना रूपा॥
चक्रबाक मन दुख निसि पैखी। जिमि दुर्जन पर संपति देखी॥
चातक रटत तृषा अति ओही। जिमि सुख लहइ न संकरद्रोही॥
सरदातप निसि ससि अपहरई। संत दरस जिमि पातक टरई॥
देखि इंदु चकोर समुदाई। चितवतहिं जिमि हरिजन हरि पाई॥
मसक दंस बीते हिम त्रासा। जिमि द्विज द्रोह किएँ कुल नासा॥
दोहा- भूमि जीव संकुल रहे गए सरद रितु पाइ।
सदगुर मिले जाहिं जिमि संसय भ्रम समुदाइ॥१७॥
बरषा गत निर्मल रितु आई। सुधि न तात सीता कै पाई॥
एक बार कैसेहुँ सुधि जानौं। कालहु जीत निमिष महुँ आनौं॥
कतहुँ रहउ जौं जीवति होई। तात जतन करि आनेउँ सोई॥
सुग्रीवहुँ सुधि मोरि बिसारी। पावा राज कोस पुर नारी॥
जेहिं सायक मारा मैं बाली। तेहिं सर हतौं मूढ़ कहँ काली॥
जासु कृपाँ छूटहीं मद मोहा। ता कहुँ उमा कि सपनेहुँ कोहा॥
जानहिं यह चरित्र मुनि ग्यानी। जिन्ह रघुबीर चरन रति मानी॥
लछिमन क्रोधवंत प्रभु जाना। धनुष चढ़ाइ गहे कर बाना॥
दोहा- तब अनुजहि समुझावा रघुपति करुना सींव॥
भय देखाइ लै आवहु तात सखा सुग्रीव॥१८॥
ChandraSingh
00:10:49
999
0 Downloads
0 Comments
Dharma Adharma Vivek Only scriptures can be basis of deciding Dharma and Adharma as principles of Dharma are rooted in Adhyarope-Apvadaa nyaya of Upnishads. This is explained by Swami Akhandanada Sarawati Ji.
ChandraSingh
00:23:06
871
0 Downloads
0 Comments
ChandraSingh
00:07:19
267
0 Downloads
0 Comments
show more
ChandraSingh`s Audio Likes
ChandraSingh`s Audio Playlists
Share ChandraSingh"s Profile
Share on social platforms:
ChandraSingh
profile viewed 3259 times
Who to Follow